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परि॒ प्रजा॑तः॒ क्रत्वा॑ बभूथ॒ भुवो॑ दे॒वानां॑ पि॒ता पु॒त्रः सन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari prajātaḥ kratvā babhūtha bhuvo devānām pitā putraḥ san ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑। प्रऽजा॑तः। क्रत्वा॑। ब॒भू॒थ॒। भुवः॑। दे॒वाना॑म्। पि॒ता। पु॒त्रः। सन् ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:69» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:12» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उनहत्तरवें सूक्त का आरम्भ किया जाता है। इसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुणों का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (उषः) प्रातःकाल की वेला के (जारः) आयु के हन्ता सूर्य के (न) समान (शुक्रः) वीर्यवान् शुद्ध (शुशुक्वान्) शुद्ध कराने (पप्रा) अपनी विद्या से पूर्ण (युवः) भूमि के मध्य (दिवः) प्रकाश से (समीची) पृथिवी को प्राप्त हुए (ज्योतिः) दीप्ति के (न) समान (परि) सब प्रकार (प्रजातः) प्रसिद्ध उत्पन्न (क्रत्वा) उत्तम बुद्धि वा कर्म्म के साथ वर्त्तमान (देवानाम्) विद्वानों के (पुत्रः) पुत्र के तुल्य पढ़नेवाला सब विद्याओं को पढ़ के (पिता) पढ़ानेवाला (बभूथ) होता है, उसका सेवन सब मनुष्य करें ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। विद्यार्थी न होके कोई भी मनुष्य विद्वान् नहीं हो सकता और किसी मनुष्य को बिजुली आदि विद्या तथा उसके संप्रयोग के विना बड़ा भारी सुख भी नहीं हो सकता ॥ १ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते ॥

अन्वय:

यो मनुष्य उषो जारो नेव शुक्रः शुशुक्वान् पप्रा भुवो दिवः समीची ज्योतिर्न परि प्रज्ञातः क्रत्वा सह वर्त्तमानो देवानां पुत्रः सन् पिता बभूथ भवति, स एव सर्वैस्सेव्यः ॥ १ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुक्रः) वीर्यवान् शुद्धः (शुशुक्वान्) शोचकः (उषः) उषाः। अत्र सुपां सुलुगिति ङमो लुक्। (न) इव (जारः) वयोहन्ता सूर्यः (पप्रा) स्वविद्या पूर्णः। अत्र आदृगमहनजन० इति किः। सुपां सुलुगिति सोर्डादेशश्च। (समीची) सम्यगञ्चति प्राप्नोति सा भूमिः (दिवः) प्रकाशात् (न) इव (ज्योतिः) (परि) सर्वतः (प्रजातः) प्रसिद्ध उत्पन्नः (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (बभूथ) अत्र बभूथाततन्थजगृभ्म०। (अष्टा०७.२.६४) इति निपातनादिडभावः। (भुवः) पृथिव्याः (देवानाम्) विदुषाम् (पिता) अध्यापकः (पुत्रः) अध्येता (सन्) अस्ति ॥ १ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषोपमालङ्कारौ। नहि कश्चिदपि विद्यार्थित्वेन विना विद्वान् जन्यते हि कस्यचिद् विद्युदादिविद्यासंप्रयोगाभ्यां विना महान् सुखलाभो जायत इति ॥ १ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशी गाईची कास दूध देऊन सर्वांना सुख देते, जशी विद्वान माणसे सर्वांवर उपकार करतात तसेच सभा इत्यादीमध्ये स्थित शुभगुणयुक्त सभापती तू सर्वांना सुख देणारा हो. ॥ २ ॥